
नमस्कार किसान भाइयों स्वागत है आपका हमारे वेबसाइट पर। जैसा कि आप लोग जानते हैं कि हम आपके लिए आधुनिक खेती से जुड़े हुए फसलों की जानकारी अपने लेख के माध्यम से देते रहते हैं। पर आज हम बात करेंगे एक ऐसी खेती के बारे में जिससे आप लाख नहीं बल्कि करोड़ों रुपए कमा सकते हैं। यूं तो भारतवर्ष में कई तरह की खेती की जाती है लेकिन अच्छा मुनाफा और पैसा देने वाली बहुत ही कम फसलें होती हैं। दरअसल आज हम बात करेंगे वनीला की खेती के बारे में। जी हां, आपने सही सुना।
वनीला की खेती किसान भाइयो के लिए कितना फायदे का सौदा है?
वनीला जिसे अक्सर बच्चे आइसक्रीम के एक फ्लेवर के रूप में बड़े चाव से मजे लेकर खाते हैं। लेकिन आइसक्रीम वाली वनीला सिंथेटिक होती है। जबकि हम यहां पर नेचुरल वनीला की बात करें जिसकी कीमत बहुत ज्यादा होती है। किसान भाइयों आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि वनीला के बीज की कीमत लगभग 40 हज़ार रुपए प्रति किलो रहती है। मतलब किसान भाइयों हम इसकी खेती से करोड़ों रुपए की कमाई कर सकते हैं और इस फल की कई देशों में काफी डिमांड है।
वनीला आर्किड परिवार का मेंबर है। यह एक बेल पौधा है, जिसका तना लंबा और बेलनाकार होता है। इसके फल के साथ फूल भी बहुत सुगंधित होते हैं, जो कैपसूल की तरह दिखते हैं। खास बात यह है कि इसके एक फल से ढेरों बीज प्राप्त होते हैं। वनीला की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी और तापमान।
वनीला की खेती कैसे करें?
वनीला की फसल को यूटिलिटी, छाया और मध्यम तापमान की जरूरत होती। आप रोड हाउस बनाकर ऐसा वातावरण बना सकते हैं। रोड हाउस बनाकर फव्वारा विधि से किया जा सकता है उपयुक्त तापमान वनीला की खेती के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से ठंडी फाइव डिग्री सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती और यह तापमान पैदावार के लिए अच्छा माना जाता है। पेड़ों से छनकर जो रोशनी आती है, वह वनीला की फसल के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है।
आपके खेत में बहुत सारे पेड़ या बाग है तो आप इंटरक्रॉपिंग की तरह इसकी खेती आसानी से कर सकते हैं। वनीला की फसल तीन साल बाद पैदावार देना शुरू कर देती है। वनीला की खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी और जैविक पदार्थों से भरपूर होना चाहिए। आप जिस खेत में वनीला की खेती करना चाहते हैं, वहां की मिट्टी की जांच अवश्य करवाएं और अच्छे जलनिकास वाली जगह चुनें तथा जमीन का पीएच मान सिक्स पॉइंट फाइव से सेवन पॉइंट फाइव तक होनी चाहिए। इस मिट्टी में जैविक पदार्थों की कमी पता चली तो सड़ी हुई गोबर की खाद, केंचुए की खाद डाली जा सकती है।