
आपको जानकर हैरानी होगी कि स्टीविया में चीनी से भी ज्यादा मिठास होती है और इसका प्रयोग स्वास्थ्य पर कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता। चीनी की तुलना में स्टीविया धीरे – धीरे मिठास उत्पन्न करता है और ज्यादा देर तक रहता है। इसके सार की मिठास चीनी के मिठास से 300 गुणा अधिक मीठी होती है। मीठा स्वाद स्टीविया पौधे के भीतर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले यौगिकों से आता है जिसे स्टीवी योर ग्लाइकोसाइड कहा जाता है। न्यून कार्बोहाइड्रेट न्यून शर्करा के लिए एक विकल्प के रूप में बढ़ती मांग के साथ स्टीविया का संग्रह किया जा रहा है। स्टीविया में मिठास होने की वजह से इसे हानि प्लांट भी कहते हैं।
स्टेविआ का उपयोग जानकार हैरान रह जाएंगे।
इसका उपयोग अधिकतर डायबिटीज के रोगी औषधीय टॉनिक के रूप में करते हैं। किसान स्टीविया की खेती यानि कि स्टीविया कल्टीवेशन करके न सिर्फ काफी मुनाफा कमा सकते हैं बल्कि यह मधुमेह के मरीजों को उनके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी मुहैया करा सकते हैं। स्टीविया भारतवर्ष में कृषिकरण के लिए अपेक्षाकृत नया पौधा है तथा इसकी बड़े स्तर पर खेती अभी तक मुख्यतया कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों तक ही सीमित है। इसके साथ साथ अभी तक यह समझा जाता था कि यह पौधा ज्यादा ठंडी या ज्यादा गर्म यानि कि 10 डिग्री से नीचे या 41 डिग्री के ऊपर जलवायु सहन नहीं कर सकता। परंतु हाल ही में सन फूड्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित इसकी कुछ प्रजातियों ने इस अवधारणा को गलत सिद्ध कर दिया है तथा अब इसकी खेती देश के विभिन्न भागों में सफलतापूर्वक की जाने लगी है।
स्टेविआ की खेती कैसे की जाती है?
मध्यप्रदेश के साथ साथ कई अन्य राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश आदि में भी इसकी खेती प्रारंभ हो चुकी है, जिनके परिणामों के आधार पर इसकी कृषि तकनीक को नियमानुसार देखा जा सकता है। स्टीविया के पौधे ऐसी मिट्टी में सर्वाधिक सफलतापूर्वक पनपते हैं जो नर्म हों, ज्यादा चिकनी न हो, जिसमें जीवाश्म की मात्रा काफी हो तथा जिसमें पानी ज्यादा देर तक रुकता न हो। इस प्रकार ज्यादा चिकनी तथा भारी कपास या मिट्टियां इसके लिए उपयुक्त नहीं है। प्राय रेतीली दोमट मिट्टियां, हल्की कपासिया तथा लाल मिट्टियां, जिनका पीएच 6 से 8 के बीच होता है, इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। उन क्षेत्रों को छोड़कर जहां न्यूनतम तापक्रम शीत ऋतु में पाँच अंश के नीचे चला जाता है।
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