
अगर आप सोयाबीन की खेती करना चाहते हैं तो इस लेख में आपको इससे जुड़ी कई सारी जानकारियां मिल जाएगी, जिससे आपकी सोयाबीन की खेती और भी बेहतर और अच्छे ढंग से होगी।
सोयाबीन को गोल्डन बीन के नाम से भी जाना जाता है। सोयाबीन फलीदार फसल परिवार से जुड़ी है। इसका मूल निवास पूर्वी एशिया को माना जाता है। सोयाबीन में पोषक और बहुत मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। सोयाबीन का तेल भारत में सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाने वाले तेलों में से एक है। इसका लोकप्रियता भारत में बहुत है और लोग इसे खाना पसंद करते हैं। सोया को मिल्क प्रोडक्ट में भी प्रयोग किया जाता है और जो सोया चंक्स के रूप में उपलब्ध होता है जिसे भारत में मिल्क मेकर भी कहते हैं।
सोयाबीन से हमें स्वास्थ्य में क्या लाभ मिलती है।
सोयाबीन से हमारे शरीर को कई तरीके से लाभ मिलती है। सोयाबीन से जुड़े स्वास्थ्य के लाभ नीचे दिए गए हैं।
- सोयाबीन में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है और साथ ही इसमें फैट भी कम होता है।
- सोयाबीन में जरूरी हिरदे अनुकूल ओमेगा 3 होता है।
- सोयाबीन हमें महत्वपूर्ण खनिज प्रदान करते हैं जैसे कैल्शियम, लोहा, सेलेनियम और मैग्नीशियम।
- सोयाबीन से हमें फाइबर का मात्रा अधिक प्राप्त होता है।
- सोयाबीन में हमें एक अच्छा मात्रा में कैल्शियम और विटामिन B12 का स्रोत प्राप्त होता है।
- सोयाबीन में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जिसमें मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी अमीनो एसिड होता है।
- सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन्स पाया जाता है जो हमारे कैंसर रोग या हृदय रोग के जोखिम से बचाता है।
भारत में सोयाबीन के स्थानीय नाम।
सोया चिक्कुडु (तेलुगु), सुंथा कदलाई (तमिल), सोया (कन्नड़), सोयाबीन सोयाबीन (मराठी), सोयाबीन (हिंदी), सोयाबीन (मलयालम)।
भारत में सोयाबीन कितने प्रकार के पाए जाते हैं।
पूरे भारत भर में सोयाबीन की खेती की जाती है। अलग-अलग स्थानों पर इसकी अलग-अलग प्रकार पाए जाते हैं। भारत में विभिन्न प्रकार के सोयाबीन की खेती होती है जो नीचे दिए गए हैं।
जेएस 90-41, एसएल 295, पीके 472, पीके 416, वीएल सोया 21, अहिल्या 2 (एनआरसी 12), एमएसीएस 124, जेएस 75-46, पूसा 16, जेएस 80-21, अहिल्या 1 (एनआरसी 2), अहिल्या 3 (एनआरसी 7), पंत सोयाबीन 1029, पूसा 9712, टीएएमएस 38, फुले कल्याणी, जेएस 335, पीके 1024, वीएल सोया 47, अहिल्या 4 (एनआरसी 37), पीके 1092, प्रतिष्ठा (मौस 61-2), जेएस 71-05, जेएस 93-05, एमएसीएस 450, इंदिरा सोया 9, हरा सोया, परभणी सोना (मौस 47), समृद्धि (मौस 71), पूसा 9814, प्रताप सोया 2, टीएएमएस 38
सोयाबीन की खेती करने के लिए सबसे अच्छा मौसम।

सोयाबीन की खेती सबसे अच्छे तरीके से गर्म और नम जलवायु में होती है जिससे वह अच्छी तरीके से पनपते हैं। सोयाबीन की अधिकतर किस्में के लिए 26 डिग्री सेल्सियस से लेकर 32 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे बेहतर होता है। सोयाबीन की खेती करने के लिए स्कीमिटी का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना चाहिए जिससे इसमें तेजी से अंकुरण और वृद्धि होती है। सोयाबीन की खेती में तापमान का एक महत्वपूर्ण उपयोग रहता है, क्योंकि अगर इसको अच्छा तापमान ना मिले तो इसके फूल आने में कठिनाई होती है। सोयाबीन की किस्मो में दिन की लंबाई एक प्रमुख कारक होती है क्योंकि वह छोटे दिन के पौधे होते हैं।
सोयाबीन रोपने की सबसे अच्छा समय।
सोयाबीन को रोकने के लिए सबसे अच्छा समय जून महीने के तीसरे सप्ताह से होता है। जून महीने के तीसरे सप्ताह से लेकर आप इसे जुलाई महीने के बीच तक रोप सकते हैं।
सोयाबीन की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी का आवश्यकता है।
सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। सोयाबीन की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच 6.0 से लेकर 7.5 के बीच में होना चाहिए। लवणीय एवं क्षारीय भूमि के कारन सोयाबीन के बीजों में अंकुर होने में दिक्कत आती है। ऐसी मिट्टी इसके बीजों को अंकुरित होने से रोकती है। सोयाबीन की खेती में ज्यादा जल होने के कारण नुकसान हो सकती है, ऐसे में बरसात के मौसम में आपको जल निकासी पर ध्यान देना होता है।
सोयाबीन की खेती में बीज दर।
सोयाबीन की बीज दर इनके किस्म पर आधारित होता है। किस्म के आधार पर औसतन बीज दर 1 एकड़ में 16 किलो होता है। बीज दर बीज के आकार अंकुरण प्रतिशत और बुनाई के समय पर भी निर्भर करता है।
सोयाबीन की खेती में भूमि का चयन और उसकी तैयारी।
सोयाबीन की खेती करने के लिए भूमि का चयन करना बहुत ही जरूरी है क्योंकि इससे आपके सोयाबीन की उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। सोयाबीन की खेती करने वाली भूमि में स्वयंसेवी पौधों का ना होना जरूरी होता है। हमें ऐसी भूमि का प्रयोग करना चाहिए जिसमें पिछले साल सोयाबीन की खेती नहीं हुई थी। लगातार सोयाबीन की खेती करने वाली भूमि में विल्ट रोगजनक हो जाता है जिससे हमें दूर रहना चाहिए। फसल चक्र का इस्तेमाल करके हमें रोगजनक को दूर कर सकते हैं। ज्यादा मात्रा में कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी बीज के उत्पादन में मदद करती है।
सोयाबीन की खेती में फसल चक्र।
सोयाबीन की खेती में फसल चक्र बहुत उपयोगी साबित होता है। फसल चक्र के रूप में आप मंडुवा तिल और मक्का जैसे अनाज की खेती कर सकते हैं। अंतर खेती में मक्का कि पौधों की पंक्ति को 100 सेंटीमीटर दूर होना चाहिए, पौधे से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर और मक्का की पंक्तियों के बीच सोयाबीन की 3 पंक्तियां होनी चाहिए।
सोयाबीन की खेती में बीच का चयन जरूरी है।
बुवाई के लिए सोयाबीन के बीज एक प्रमाणिक स्रोत के रूप में उपयोग होता है। सोयाबीन के बीजों को हमें अच्छे तरीके से चयन करना चाहिए, जो शुद्ध और साफ हो। सोयाबीन के बीच लेते समय हमें कठोर, सिकुड़े, रोग ग्रस्त, क्षतिग्रस्त जैसे बिजों से हमें दूर रहना चाहिए।
सोयाबीन के बीजों का उपचार कैसे करें।
किसी भी बीच को रोकते नियंत्रण में लाने के लिए हमें सोयाबीन के बीजों को कार्बेन्डाजिम कवकनाशी 4 ग्राम किलो-लीटर बीज से उपचारित करना चाहिए।
सोयाबीन की खेती का बुवाई कैसे करें।
सोयाबीन की खेती में बुवाई हम सीडड्रिल की सहायता से करनी चाहिए या हल्के पीछे 45 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए। सोयाबीन की पौधे का दूरी एक दूसरे से 4 सेंटीमीटर से लेकर 5 सेंटीमीटर तक रखा जाता है। अच्छी नमी वाली मिट्टी में सोयाबीन की बीजों को जमीन के अंदर ज्यादा से ज्यादा तीन से चार सेंटीमीटर तक रखा जाता है।
सोयाबीन की खेती में खाद और उर्वरक।
एक-एक करके जमीन में हमें 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद, जैसे गाय का गोबर या किसी भी फॉर्म याड कार्ड (FMY) को 360 किलो सुपर फास्फेट, 40 किलो यूरिया और 50 किलो पोटाश म्यूरेट के बेसल आवेदन के साथ फैलाया जाता है।
सोयाबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें।

हमें सोयाबीन की खेती में बुवाई करने और पानी देने के तुरंत बाद ही बेसालिन वीडीसाइड 2 मिली को 1 लीटर पानी में घोलकर इस्तेमाल करना चाहिए। खरपतवारनाशी काया छिड़काव बुवाई के 3 दिनों के अंदर ही करना आवश्यक होता है, अगर आप इसको बाद में करें तो सोयाबीन की फसल का नुकसान हो सकता है। फसल में बाद मैं उभरने वाली खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए दो हफ्ता के बाद हाथ से निराई करनी चाहिए। कभी-कभी हमें 600 मिलीलीटर बेसलीन को 200 किलो रेत में मिलाकर बुवाई करने के 3 दिनों के अंदर ही खेत में फैला दिया जाता है।
सोयाबीन की खेती में सिंचाई कैसे करें।
सोयाबीन की खेती को खरीफ के मौसम में सिंचाई करने का आवश्यकता नहीं रहता है। लेकिन आपको यदि फली भरने के समय लंबा सुखार का सामना करना पड़ जाए तो सिंचाई आवश्यक होगी। बारिश के मौसम में आपको सोयाबीन की खेती पर ध्यान देनी चाहिए, कि इसमें जलजमाव ना हो और आप इससे बचे। वसंत के मौसम में फसल को लगभग 6 से 7 बार सिंचाई करनी चाहिए।
सोयाबीन की खेती का कटाई कब करें।
सोयाबीन की खेती का अवधि 50 से 145 दिनों तक का होता है, जो खेती के लिए उपयोग की जाने वाली किस्मों पर निर्भर करती है। जब सोयाबीन की पत्तियां पीली होकर गिरने लगती है और सोयाबीन की फलियां बहुत जल्दी सूख जाती है तो यह संकेत होता है कि सोयाबीन और पूरी तरीके से हो चुकी है। कटाई डंडो को जमीन की सतह पर यहां से तोड़कर या काटने वाली चीजों से करनी चाहिए। सोयाबीन की थ्रेशिंग इसके थ्रेसर मशीन के द्वारा होता है।
निष्कर्ष :
दोस्तों ऊपर दिए गए लेख में हम आपको सोयाबीन की खेती करने से जुड़ी सभी जानकारियों के बारे में वितरण किया है। अगर आपके मन में इससे जुड़ी और भी प्रश्न है तो हम एक कमेंट बॉक्स में कमेंट कर के पूछ सकते हैं। साथ ही दूसरे अनाजों के खेती करने के बारे में जानने के लिए हमारे वेबसाइट पर जरूर आएं। आशा करता हूं कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपके लिए उपयोगिता साबित हुआ होगा। इस लेख को पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद।