
पुदीना एक सुगंध देने वाला जड़ी बूटी है जिससे आप पूरे साल उगा सकते हैं। पुदीना को इंग्लिश में मिंट कहा जाता है। पुदीना को वैज्ञानिक द्वारा मेंथा के रूप में जाना जाता है। पुदीना एक ऊर्जा देने वाली जड़ी बूटी है जिसे लोग अपने खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं। पुदीना को तेल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। पुदीना के तेल को हम टूथपेस्ट और माउथवॉश के लिए प्रयोग कर सकते हैं। पुदीना लैबिएट्स परिवार से संबंध रखता है।
स्वास्थ्य में पुदीना से हमें क्या लाभ मिलता है।
स्वास्थ्य में पुदीना की लाभ का बात की जाए तो हमारे लिए यह काफी फायदेमंद साबित होता है। पुदीना से हमारे शरीर का कई रोग दूर हो सकता है। आइए नीचे जानते हैं पुदीना हमारे शरीर के लिए किस किस चीजों में फायदेमंद है।
- पुदीना पाचन या पेट से संबंधित रोगों को दूर करने में हमारी मदद करता है।
- पुदीना से हमारे शरीर में मतली और सिर दर्द की समस्या भी नियंत्रित रहता है।
- सांस लेने और खांसी की समस्या को भी पुदीना दूर करता है।
- अस्थमा के मरीजों के लिए यह काफी असरदार साबित होता है।
- पुदीना डिप्रेशन और थकान को हमारे शरीर से दूर करता है।
- पुदीना को आप अपने वजन घटाने में भी प्रयोग कर सकते हैं।
भारत में पुदीना का स्थानीय नाम।
पुदीना पट्टा (हिंदी), पुथिना/पुदीना (तमिल), पुदीना (तेलुगु), पुदीना (कन्नड़), पुदीना (मराठी), हारा पुदीना (पंजाबी), फुदीनो/फोडिना (गुजराती), पुतियिना/पुदीना (मलयालम), पुद्यानु ( कश्मीरी)।
पुदीना कितने प्रकार के होते हैं।
पुदीना अधिकतम रूप से चार प्रकार की होती है।
- जापानी मिंट/ मेंथॉल मिंट
- स्पीयर मिंट (पहाड़ी पुदीना)
- पेपरमिंट
- बरगामोट मिंट
जापानी मिंट/ मेंथॉल मिंट भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली पुदीना है। दुकान पर जिस पुदीना को हम लोग लेते हैं उसे स्पीयर मिंट कहते हैं।
पुदीना की खेती के लिए आवश्यक मौसम।
पुदीना की खेती ट्रॉपिकल क्लाइमेट में अच्छी तरीके से नहीं हो पाती है। हालांकि जापानी मिंट को आप ट्रॉपिकल या सब ट्रॉपिकल रीजन में उगा सकते हैं। पुदीना के खेती के लिए सबसे अच्छा तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से लेकर 40 डिग्री सेल्सियस तक होता है। साथ ही वर्षा का मात्रा 100 सेंटीमीटर से लेकर 110 सेंटीमीटर के बीच होना चाहिए। पुदीना के रोपते समय हल्की बारिश और काटते समय अच्छी धूप कहां हो ना इसके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। इस क्लाइमेट से पुदीना के पत्तों में अच्छे गुण आते हैं और यह बेहतर तरीके से उगा हुआ रहता है।
पुदीना की खेती कैसी मिट्टी पर कर सकते हैं।

पुदीना की खेती हम कई प्रकार की मिट्टी में कर सकते हैं। हालांकि बात करें इसकी सबसे अच्छी मिट्टी के बारे में तो हमें दोमट या रेतीली दोमट या जैविक पदार्थों से भरपूर गहरी मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए। पुदीना को अच्छे से विकास होने के लिए आपको इसकी मिट्टी में जल निकासी का पूरा ध्यान रखना चाहिए और साथ ही इसकी बनावट ढीली होनी चाहिए।
जिस मिट्टी में 6.5 और 8.5 तक पीएच रेंज रहता है उस मिट्टी में इसकी सबसे अच्छी खेती की जा सकती है। पुदीना की खेती करना है तो आपको चिकनी मिट्टी से बचनी चाहिए, चिकनी मिट्टी में पुदीना नहीं उगती है। आपको इसकी खेती करते समय पानी के ठहराव से बचना होगा। पुदीना की खेती आप खाली और लाल दोनों मिट्टी में कर सकते हैं।
पुदीना की खेती के लिए भूमि कैसे तैयार करें।
पुदीना को रोकने से पहले हमें मिट्टी को अच्छे तरीके से जुताई करनी चाहिए। मिट्टी को हमें दो बार जुताई करनी चाहिए जिससे वह भुरभुरा स्थिति में हो जाए। मिट्टी की जुताई करने के बाद हमें मिट्टी में प्रति हेक्टेयर कम से कम 50 से 60 कार्ट लोड गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे हमारे मिट्टी और भी ज्यादा उपजाऊ हो।
पुदीना को रोपने का सही समय।
पुदीना को आप मानसून सीजन शुरू होने से पहले रोप सकते हैं। उत्तरी भारत में जापानी मिंट का रोपने का सही समय फरवरी महीने के पहले सप्ताह से लेकर मार्च महीने के दूसरे सप्ताह तक होता है।
पुदीना को रोकने का सही तरीका।
मिट्टी में रोपने से पहले हमें सकर्स को सबसे पहले 10 से 14 सेंटीमीटर लंबाई में काट लेनी चाहिए। एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 450 से 500 किलो सकर का जरूरत होता है। सकारों को खांचों में इस्तेमाल करना चाहिए। सकर्स को एक दूसरे से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएं और साथ ही 60 सेंटीमीटर कतारों की दूरी में लगाएं।
पुदीना की खेती में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल।
पुदीना की खेती के समय, पुदीना को रोकने से पहले प्रति हेक्टेयर लगभग 25 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम पोटेशियम, 65 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की जरूरत रहती है। रोपण के समय, 1/5 N के साथ P और K का इस्तेमाल पूरे मिट्टी में मिला कर करें।
पुदीना की खेती में फसल चक्र करें।
खरपतवारों को नियंत्रित करने का सबसे बढ़िया उपाय होता है कि आप अन्य खाद फसलों के साथ फसल चक्र अपना ले। एक ही खेत में हमेशा पुदीना की फसल लगाने के लिए मना किया जाता है, इसलिए आप लोग फसल चक्र का इस्तेमाल कर सकते हैं। फसल चक्र में आप कई तरह के अन्य खादों का भी खेती कर सकते हैं। सबसे अच्छा रोटेशन पोदीना है : आलू और पुदीना, चावल और पुदीना, सब्जी और मटर। आप अपने क्षेत्र में उगने वाली फसल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पुदीना की खेती को कैसे और कब सिंचाई करें।

पुदीना की खेती के लिए हमें अच्छी नमी की आवश्यकता होती है, जो उसके पूरे विकास काल में अच्छी तरीके से वितरण हो। गर्मी के मौसम में हमें पुदीने की खेती को 10 से 12 बार सिंचाई करना होता है। साथ ही गर्मी के मौसम में आप 10 से 12 दिन का सिंचाई करने में आप समय ले सकते हैं। साथ ही पतझड़ के मौसम में इसकी आपको 5 से 6 बार सिंचाई करनी होती है। बारिश के मौसम में आपको इस पर ज्यादा ध्यान देना होगा ताकि इसके खेती में पानी का ठहराव ना हो। इसकी खेती में अच्छी तरीके से जल निकासी प्रदान करना होता है।
पुदीने की खेती में लगने वाले कीट एवं रोग।
कीटों से बीमारी:
हेरी कैटरपिलर – इसे नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान (या) थियोडान @ 1.7 मिली / लीटर पानी डालें।
कटवर्म – इसके नियंत्रण के लिए बोने से पहले मिट्टी को फोरेट 10 ग्राम से उपचारित करें।
लाल कद्दू भृंग – इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में अच्छे तरीके से मिलाकर इसे चारों तरफ फैला दे।
मिंट लीफ रोलर – इसे नियंत्रित करने के लिए थियोडान 1.5 मि.ली./लीटर पानी की दर से साप्ताहिक अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करें।
बीमारी:
स्टोलन रोट -इसे नियंत्रित करने के लिए, ए) चावल, गेहूं और पुदीना के साथ 3 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए। बी) स्टोलन को कैप्टान के 0.25% घोल या 0.3% एगलोल घोल, या 0.1% बेनलेट के साथ 2 के लिए उपचारित करें। बोने से 3 मिनट पहले।
फ्यूजेरियम विल्ट – इसके नियंत्रण के लिए बाविस्टिन, बेनलेट और टॉप्सिन का प्रयोग करें।
लीफ ब्लाइट – इसके नियंत्रण के लिए कॉपर फफूंदनाशक का प्रयोग करें।
पुदीने की कटाई किस समय करें।
पुदीने की खेती में आप इसकी एक साल में दो से तीन बार कटाई कर सकते हैं। पहली फसल की कटाई मई-जून में बरसात के मौसम शुरू होने से पहले की जाती है। दूसरी फसल की कटाई आपको सितंबर-अक्टूबर महीने में करनी होती है। साथ में तीसरी फसल की कटाई को हमें नवंबर-दिसंबर महीने में करनी होती है।