
जमीनी स्तर पर मखाना की खेती करने के लिए गोबर की खाद के साथ 70 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस और 30 किलो पोटाश का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा पूरे खेत में पानी छोड़ने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि यह एक दलदलीय फसल है। मखाना की खेती पौध लगाकर भी की जा सकती है। एक हैक्टेयर में रोपाई के लिए 25 से 30 किलो बीजों की ज़रूरत पड़ती है। वैज्ञानिकों ने अभी तक स्वर्ण वैदेही और सबौर मखाना एक इन दो प्रमुख प्रजातियों को विकसित किया है।
मखाना की खेती के लिए कौन सा किस्म का बीज अच्छा होता है?
मखाना की खेती के लिए बीज मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा और भोला पासवान शास्त्री महाविद्यालय, पूर्णिया से खरीदे जा सकते हैं। नर्सरी और मुख्य जगह का पानी का स्तर एक समान होना चाहिए, तब जाकर बांध की ऊंचाई का अनुमान लगाया जा सकता है। बुवाई के 2 से 3 महीनों बाद पौधा बनकर तैयार हो जाती है, जिसके बाद रोपाई की जाती है। खेती की पूरी प्रक्रिया के दौरान कम से कम दो फीट तक पानी का स्तर बनाए रखना ज़रूरी होता है।
मखाना की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय क्या है?
मखाना के पौधों पर पैदा होने वाले फूल को नीलकमल कहा जाता है। अप्रैल मई के महीनों में ये फूल पानी की ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं। जब फूल खिल जाता है तभी बीज का फल में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। जैसे जैसे बीज का वजन बढ़ने लगता है, वैसे – वैसे ये फूल पानी के अंदर चला जाता है। जुलाई – अगस्त तक मखाना के कांटेदार फल निकल आते हैं। मखाना का पौधा जब पूरा विकास कर लेता है, तब है गलकर पानी में चला जाता है और बीज कीचड़ पर जा बैठते हैं। फूल गलने से पहले बीज निकालना मुश्किल काम होता है, क्योंकि कांटे चुभने का खतरा रहता है।
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