
तो चलिए दोस्तों सबसे पहले जानते हैं दूध निकालने का सारा प्रॉसेस और देखते हैं कैसे उसे आपके पास पहुंचने से पहले उसके साथ क्या क्या किया जाता है। मिल्क प्रोसेसिंग एंड कलेक्टिंग जब गायों के स्तन भर जाते हैं तो उनमें से दूध निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। यह प्रक्रिया हाथों से भी की जा सकती है और मिल्किंग मशीन के द्वारा भी। हालांकि दोनों तरीकों से करने में कोई बुराई नहीं है।
किसान गाय के हिसाब से दूध निकालने का समय तय करते हैं। ज्यादातर गाय सुबह दूध देती हैं और शाम को भी देती हैं तो दोनों बार ही दूध निकाल लिया जाता है। हाथों से यह बहुत ही नरमी के साथ किया जाता है। गायों के डेट्स को बहुत ही नरमी से दबाया जाता है ताकि भरा हुआ दूध निकाला जा सके। जी हां दोस्तों मशीनों के द्वारा भी यह काम किया जाता है जिसमें और कम समय लगता है और मेहनत भी कम होती है। यह सब करने के बाद इस पूरे दूध को स्टोर करने के लिए भेज दिया जाता है। जहां पर इसे करीब 39 डिग्री के तापमान पर रखा जाता है।
दूध फर्म से दूध को कंटेनर में कलेक्ट कर लिया जाता है और एक टैंकर में भर दिया जाता है और उस टैंकर के अंदर का तापमान बहुत ही ठंडा होता है जिससे दूध को ले जाते वक्त किसी भी तरह की खराबी न देखने को मिले। जब दूध को अलग – अलग फार्म से लाया जाता है तो उसको फिर सैम्पलिंग के लिए भेज दिया जाता है। जहां पर उसके एंटीबायोटिक्स का टेस्ट किया जाता है और उसी के बाद ही उसको प्रॉसेसिंग के लिए आगे भेजा जाता है।
इन टेस्ट में कई चीजों का पता लगाया जाता है जैसे कि मिल्क फैट, प्रोटीन, मिल्क सेल काउंट, बैक्टीरिया। सबसे अच्छा अगर कोई भी टेस्ट बेकार आता है तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है और उसका रिजल्ट अच्छा आता है। उनको आगे प्रोसेसिंग के लिए रवाना कर दिया जाता है। आगे प्रोसेसिंग में उसको पाश्चर डाइजेशन के लिए भेज दिया जाता है। जहां पर उसको निर्धारित समय के लिए गर्म किया जाता है और फिर ठंडा किया जाता है।
उसके बाद दूध को घुमाया जाता है जिससे कि क्रीम दूध में होती है उसे अलग किया जा सके और फिर से कुछ समय बाद वापस मिलाया जाता है। इसकी मदद से दूध में निर्धारित मात्रा में ही क्रीम होता है। जिसके बाद इसे आगे भेज दिया जाता है। जहां पर इस पर कई अल्ट्रा हाई ट्रीटमेंट किए जाते हैं। जिससे दूध जल्दी खराब न हो और ज्यादा समय तक चले। इसके बाद दूध की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाती है और उसे आगे पैकेजिंग के लिए भेज दिया जाता है। जहां उन्हें प्लास्टिक की थैलियों से लेकर प्लास्टिक की बोतलों में भरा जाता है।