
आज के इस लेख में हम बात करेंगे एक ऐसे पौधे के बारे में जो की आपको छूने के बाद घिनौना, बदबूदार और दर्द का भी अनुभव हो सकता है। परन्तु उसके फायदे सुनकर आप चौंक जाएंगे जो कि औषधीय पौधे के रूप में भी विख्यात है। हाँ अगर आप अनुमान लगा पा रहे है तो आपकी पौधों को लेकर नॉलेज अच्छी है। ऐसा बिलकुल मत सोचिये क्योंकि यह एक बहुत ही कॉमन पौधा है जिसका इस्तेमाल आपने अपने जीवन में किसी न किसी रूप में ज़रूर किया होगा। तो बिना खुश हुए आगे चलते हैं और इस लेख को शुरू करते हैं।
एलोवेरा की खेती से के बारे में।
आप आपने बिल्कुल सही सोचा है। हम बात कर रहे हैं घृतकुमारी या एलोवेरा की खेती जिसको रघुनन्दन या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। अगर हम बात करें इसके फिगर की तो एलोवेरा का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई 60 से 100 सेंटीमीटर तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भार आकार मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग हरा, हरा, स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं।
एलोवेरा के पौधे कैसे होते हैं?
पत्ती के किनारों पर सफेद छोटे दांतों की एक पंक्ति होती है। गर्मी के मौसम में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं। एलोवेरा में औषधीय गुण होने के कारण इस पौधे की भारत में बहुत ज्यादा डिमांड है। दवाई कंपनियों से लेकर कॉस्मेटिक उत्पाद और फेसपैक बनाने वाली कंपनियां इसकी खरीद बड़ी मात्रा में करती हैं। मार्केट में एलोवेरा की डिमांड को देखते हुए एलोवेरा की खेती करना बहुत ही फायदेमंद है और इस व्यापार में बहुत ज्यादा लागत भी नहीं आती।
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