अफीम की खेती कैसे होती है, अफीम की खेती से जुडी सभी महत्वपूर्ण जानकरी। 

अफीम की खेती कैसे होती है, अफीम की खेती से जुडी सभी महत्वपूर्ण जानकरी। 

दोस्तों पूरी दुनिया में बनने वाली दवाइयों के लिए एक चीज जो बहुत ही जरूरी होती है उसका नाम है अफीम। अंग्रेजी में जिसे ओपियम कहते हैं। अब आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस अफीम को लोग नशीली चीज समझकर उसके परहेज की तमाम बातें करते हैं, सरकार उसी नशीले अफीम की खेती करती है। जी हां दोस्तों यह बात काफी हैरान करने वाली है कि भारत में भी अफीम की खेती होती है और उसकी खेती खुद सरकार करती है। 

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बिल्कुल वैसे ही जैसे आम तौर पर बड़े किसान करते हैं जिनके पास बहुत सी जमीनें होती हैं और वो अपनी जमीनों को दूसरे गरीब किसानों को फसल उगाने के लिए दे देते हैं और फसल का एक बड़ा हिस्सा अपने पास रखते हैं। सरकार भी इसी तरह से अफीम की खेती के लिए करती है। तो आखिर क्या है पूरा प्रॉसेस और क्यों सरकार अफीम पर इतने क़रीब से नजर रखती है। आज के इस लेख में हम आपको यही बताने वाले हैं। 

अफीम की खेती कैसे होती है?

दोस्तों सबसे पहले तो यह समझते हैं कि अफीम की खेती होती कैसे है। तो दोस्तों अफीम की खेती ठंड के दिनों में होती है। अक्टूबर से लेकर नवंबर तक इसकी फसल बोई जाती है। इसके लिए पहले खेत को 3 से 4 बार अच्छे से जोता जाता है और उसमें ढेर सारी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डाला जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अफीम की खेती में एक मिनिमम पैदावार करनी होती है। इसीलिए मिनिमम पैदावार के लिए जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषण होना चाहिए, वरना आपका लाइसेंस कैंसल हो सकता है। अधिक पैदावार के लिए खेती से पहले जमीन की जांच करवाई जाती है, ताकि पता चल सके कि किस चीज की कमी है और उसे कैसे पूरा किया जाए। 

अफीम की खेती के लिए लाइसेंस कैसे लिया जाता है?

अफीम की खेती के लिए सबसे पहले लाइसेंस लेना होता है। इसका लाइसेंस भी कुछ खास जगहों पर ही खेती के लिए दिया जाता है। वहीं कितने खेत में आप खेती कर सकते हैं, यह भी पहले से ही तय किया जाता है। आपको बता दें कि इसका लाइसेंस वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी किया जाता है और यही वित्त मंत्रालय इस पर नजर भी रखता है। लेकिन इसी में शामिल हो जाता है नारकोटिक्स डिपार्टमेंट जो जमीनी लेवल पर इसकी देख रेख करता है। 

नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टिट्यूट अफीम पर रिसर्च करते हैं, जहां से आपको अफीम का बीज मिल जाता है। जवाहर अफीम सोला, जवाहर अफीम 539 और जवाहर अफीम 540 जैसी किस्में भारत में खेती के लिए काफी लोकप्रिय हैं। प्रति हेक्टेयर के लिए आपको करीब 7 से 8 किलो अफीम के बीज की जरूरत होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अफीम के कुछ बीज आपको कहीं से भी मिल जाए तो भी आप उन्हें नहीं उगा सकते।

बिना लाइसेंस के एक भी अफीम का पौधा आपने उगाया तो इसके लिए आप पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। 

अफीम की खेती में फूल कितने दिन में आने लगते हैं?

अफीम के पौधे में 96 से 115 दिनों में फूल आने लगते हैं और उसके बाद धीरे धीरे ये फूल झड़ जाते हैं। 15 से 20 दिनों में पौधों में डोडे लग जाते हैं। डोडो एक तरह से अफीम का फल होता है। अफीम की हारवेस्टिंग एक दिन में नहीं होती बल्कि कई बार में होती है। इन डोडों पर दोपहर से शाम तक बीच में कट लगाया जाता है। कट लगते ही डोडे से एक लिक्विड निकलने लगता है, जिसे पूरी रात निकालने के लिए छोड़ दिया जाता है। 

अगले दिन तक यह लिक्विड डोडे पर जम जाता है, जिसे धूप निकलने से पहले इकट्ठा कर लिया जाता है। यही प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है जब तक डोडे से लिक्विड निकलना बंद ना हो जाए। ध्यान रखा जाता है कि कट लगाने से करीब हफ्ते भर पहले सिंचाई कर देना चाहिए। इससे अच्छा प्रोडक्शन मिलता है। जब लिक्विड निकलना बंद हो जाता है तो फसल को सूखने दिया जाता है और फिर डोडे तोड़कर उससे बीज निकाला जाता है और इस तरह से उगाई गई अफीम को अप्रैल के महीने में हर साल नारकोटिक्स विभाग किसानों से खरीदता है। 

अफीम की खेती में खर्च कितना लगता है?

अफीम की खेती के लिए प्रति हैक्टेयर किसान को करीब 7 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है और इसकी कीमत काफी कम होती है। इसका बीज डेढ़ 150 से 200 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है। वहीं एक हैक्टेयर की खेती से करीब 50 से 60 किलो अफीम का लेटेक्स इकट्ठा होता है। यह लेटेक्स डोडे से निकले लिक्विड के जमने से बनता है। इसके लिए सरकार की तरफ से करीब ₹1,800 प्रति किलो का भाव दिया जाता है। 

जबकि अगर इसे काले बाजार में बेचा जाए तो यह ₹60,000 से लेकर ₹1.2 लाख तक में हो जाते हैं। यही अफीम की कालाबाजारी की एक बड़ी वजह भी है। इस तरह अगर एक किसान एक हैक्टेयर में उगाई सारी अफीम सरकार को बेचे तो उससे करीब ₹1 लाख की आमदनी होगी। ऐसे में उसे बीज का खर्च, खेती का खर्च, लेबर का खर्च सब निकालना होता है, जो कि मुमकिन नहीं लगता। 

अफीम की खेती भारत के किन राज्यों में होता है?

इसी वजह से अफीम की कालाबाजारी होती है। हालांकि लेटेक्स के अलावा डोडे के बीज को बाजार में बेचकर भी किसान की थोड़ी कमाई हो जाती है, जिसे खसखस कहते हैं। खसखस को किचन के मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अब आप यह तो समझ ही गए होंगे कि अफिम की खेती कैसे की जाती है। आइए अब आपको बताते हैं कि भारत में अफीम की खेती कहां – कहां की जाती है। दरअसल भारत में अफीम की खेती मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में होती है। इसके अलावा देश के किसी भी राज्य में इसकी खेती नहीं होती। 

मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर और नीमच जिले में इसकी खेती होती है और यह कहा जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम मध्यप्रदेश के इन्हीं इलाकों में होती है। भले ही पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम यहीं पैदा होती है, लेकिन अफीम की खेती यहां पर भी क़ानूनी तौर पर ही की जाती है। यहां भी अफीम की खेती वही किसान कर सकते हैं, जिनके पास लाइसेंस होता है और सरकार यह कोशिश करती है कि उसके पास इन सबकी डीटेल मौजूद हो ताकि कोई और किसान इसकी खेती ना कर सके। 

अफीम की खेती के लिए कानूनी नियम क्या है?

अब आइए देखते हैं कि इस खेती को लेकर क़ानूनी नियम क्या क्या है। सबसे पहले आपको बताएं कि अफीम की खेती के क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए पाए जाने पर जेल और जुर्माने दोनों की सजा हो सकती है। इतना ही नहीं अगर अफीम की पैदावार के लिए लायसेंस ले चुका किसान, तय से कम वजन की अफीम पैदा करता है तो उसका भी ड्रग लायसेंस खतरे में पड़ जाता है। मतलब अफीम की खेती का लायसेंस हासिल कर लेना ही किसान के लिए फतह हासिल कर लेने जैसा नहीं है। 

उसे अफीम के फिक्स प्रोडक्शन यानी पैदावार करके भी इंडियन गवर्नमेंट के हवाले करना होता है। इसके अलावा ऐसे नशीले पदार्थ की तस्करी और कारोबार को रोकने के लिए सरकार एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्यवाही कर सकती है। एनडीपीएस एक्ट का प्रयोग अफीम या उससे जुड़े उत्पादों की व्यावसायिक मात्रा यानी खरीद बिक्री कर या नशीले पदार्थ पर नजर रखने के लिए किया जाता है। इसके तहत 10 से 20 साल की सजा और 1 लाख से 2 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। 

अफीम की कम मात्रा मिलने पर भी 10 साल की सजा और ₹1 लाख का जुर्माना या फिर दोनों का रूल है। तो दोस्तों ये थी अफीम से जुड़ी सारी बातें। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि प्राइवेटाइजेशन के जमाने में अफीम की खेती को भी प्राइवेट करने की मांग उठ रही है और कुछ राज्यों में जहां अफीम की पैदावार हो सकती है और अभी सरकार नहीं होने दे रही है, वहां चुनावी माहौल में किसानों से ये वादे भी किए जाते हैं कि उनकी सरकार आई तो अफीम की खेती को राज्य में मौका देंगे। अफीम की खेती शायद सरकार इसीलिए खुद देखती है क्योंकि अगर इसे सरकार छोड़ दिया तो जाने कितनी मात्रा में इसका प्रोडक्शन शुरू हो जाए, जो पूरी तरह से अवैध धंधा बन जाएगा। 

निष्कर्ष 

दोस्तों इस लेख में हमने आपको अफीम की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकरी को बतलाया है। खैर, आपकी इस आपका अफीम की खेती के मामले में क्या राय है, वह कमेंट करके जरूर बताएं। और अगर आपको अफीम की खेती से जुडी कोई सवाल भी है तो वो भी हमे कमेंट कर के जरूर बताइयेगा। उम्मीद करता हूँ की अफीम की खेती का यह लेख को पढ़के आपको अच्छा लगा होगा और कुछ सिखने को मिला होगा। हमारा यह लेख को पढ़ने के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद। 

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